आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग-26
सिद्धार्थ स्कूटर घसीटता हुआ चल रहा था और साधना उसके पीछे पीछे।रात को जो इलाका डरावना घने जंगल सा प्रतीत हो रहा था उसे सुबह को तरोताजा कर रहे थे वहीं पेड़ पौधे जो उसे निगलना चाह रहे थे,साधना को हर कदम पर ऐसा ही लगा था।
"लीजिए माँ के दरबार पहुँच गए।"
अंदर से दरवाजा बंद था।
उसने कई बार दरवाजा खटखटाया और मांँ को आवाज़ लगाई पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला।
"आप डरिए मत यह पूरा इलाका अपना ही है।सब अभी सो रहे हैं। मुझे देरी हो रही है, मैं निकलता हूँ आप यहीं रुकिए थोड़ी देर में सब उठ जाएंगे। तब अंदर चली जाइएगा।"
"जी आप चाय भी नहीं पिए।"
"कोई नहीं रोज का यही हाल है। सुबह की चाय बड़ी किस्मत वालों को नसीब होती है।हम जैसों को नहीं।"
सिद्धार्थ स्कूटर स्टार्ट करके चला गया और साधना उसे जाता तब तक देखती रही जब तक वो उसकी आंँखों से ओझल नहीं हो गया।
ठंड में कांपती हुई साधना को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। सुबह के साढ़े छह ही बजे थे। घर में सब सो रहे थे और वो दरवाजे के पास काफी देर बैठी रही फिर उसने वहीं रखा झाड़ू देखा तो सोचा समय बर्बाद करने से अच्छा है यहाँ की ही पहले साफ सफाई कर लूंँ।
सूखे पत्ते सारी जगह बिखरे पड़े थे। उसने अपना शॉल एक तरफ टांँग दिया और साड़ी का पल्लू कमर में खोंसा फिर झाड़ू उठा लगाने लगी।थोड़ी ही देर में शरीर में गर्माहट आ गई।
वो देखा करती थी कैसे उसकी मम्मी सुबह से काम में लग जाती थी। साधना को तो कभी झाड़ू पोछा बर्तन कपड़े कभी किसी काम की जिम्मेदारी पड़ी ही नहीं थी ।वो तो सुबह कॉलेज चली जाती। उसका तो दिन भर सिर्फ पढ़ने पढ़ाने में ही जाता। घर के सारे काम माँ और भाभी ही संभाला करती थी।
साधना के हाथ में छाले पड़ गए झाड़ू लगाने से और कई जगह कांँटे भी चुभ गए सूखे पत्तों और टहनियों को इकट्ठा करते हुए। वो दर्द से कराह उठी। करीब दो घंटे से वो आंँगन का यह हिस्सा साफ कर रही थी। दरवाजा तब तक बंद ही था सब सो ही रहें थे। उसके पैरों में भी कांटे चुभ गए थे।
आंँगन पूरा चमक उठा था।इस इलाके की सफाई जैसे कभी हुई ही ना हो ऐसा लग रहा था।
साधना ने आंँगन के कोने में हैंडपंप देखा तो अपनी पूरी ताकत से चलाया और अपने हाथ पैर धोए।मुंँह पर पानी के छींटें मारे। पानी पिया और बैठ गई फिर दरवाजे के पास। दर्द से बुरा हाल था।
सावन की आत्मा उसे इस हाल में देख कर रो रही थी।मेरी साधना कितना कष्ट सह रही है। नाजों से पली आज नौकरानी की तरह काम कर रही है।
वो धीरे से साधना के करीब जाकर बैठ गया। साधना उसे नहीं देख सकती थी पर उसके करीब होने का एहसास उसे हो रहा था।
सावन ने उसके जख्मों पर फूंक मार दी।उसका दर्द कम हुआ।उसके बालों को सहलाया।उसके करीब बैठा रहा।
साधना बीती पूरी रात और सुबह सिद्धार्थ के साथ बिताए पलों को याद कर मन ही मन सावन से माफी मांँग रही थी।
"माफ कर दो सावन मुझे। मैं सिर्फ तुम्हारी थी और तुम्हारी ही रहूंँगी पर सिद्धार्थ का अब मुझ पर पूरा हक है।उसकी पत्नी हूंँ।भले कल मैंने समर्पण नहीं किया और उसने मेरे शरीर को नहीं छुआ पर कभी तो हम.... माफ कर दो सावन मुझे माफ़ कर दो।"
साधना मन ही मन सावन से माफी मांग रही थी और सावन की आत्मा ने धीरे से उसके कान में कहा.
"जा माफ किया.., हमारी किस्मत में एक दूजे का साथ बस उतना ही था। जब तुझे पूरी तरह खुश देखूंँगा तभी मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी। "
क्रमश:
आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई।
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।
कविता झा'काव्या कवि'
नंदिता राय
01-Oct-2022 09:21 PM
बेहतरीन
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Gunjan Kamal
01-Oct-2022 08:52 AM
👏👌🙏🏻
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